आर्डिनेशन कमीटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉईस एंड इन्जीनियर्स (एन सी सी ओ ई ई ई) के आह्वान पर इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में किये जा रहे संशोधन एवं केंद्र व् राज्य स्तर पर चल रही निजीकरण की कार्यवाही के विरोध में तथा पुरानी पेंशन बहाली हेतु देश के लगभग 15 लाख बिजली कर्मचारी और इंजीनियर आगामी 8 जनवरी को एक दिन की राष्ट्रव्यापी हड़ताल /कार्य बहिष्कार करेंगे |
नेशनल कोआर्डिनेशन कमीटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉईस एंड इन्जीनियर्स ने यह भी एलान किया है कि यदि निजीकरण करने हेतु इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में संशोधन करने हेतु आर्डिनेंस जारी करने की कोशिश हुई तो बिना और कोई नोटिस दिए देश भर के बिजली कर्मचारी व् इंजीनियर उसी समय लाइटनिंग हड़ताल पर चले जाएंगे | एन सी सी ओ ई ई ई ने कहा है कि बिजली उत्पादन के क्षेत्र में निजी घरानों के घोटाले से बैंकों का ढाई लाख करोड़ रु पहले ही फंसा हुआ है फिर भी निजी घरानों पर कोई कठोर कार्यवाही करने के बजाय केंद्र सरकार नए बिल के जरिये बिजली आपूर्ति निजी घरानों को सौंप कर और बड़े घोटाले की तैय्यारी कर रही है |
ऑल इण्डिया पॉवर इन्जीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने यहाँ बताया कि नेशनल कोआर्डिनेशन कमीटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉईस एंड इन्जीनियर्स की समन्वय समिति में ऑल इण्डिया पॉवर इन्जीनियर्स फेडरेशन, ऑल इण्डिया फेडरेशन ऑफ़ पॉवर डिप्लोमा इंजीनियर्स , इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉईस फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया (सीटू), ऑल इन्डिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉईस (एटक ),इण्डियन नेशनल इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फेडरेशन (इन्टक ), ऑल इन्डिया पावरमेन्स फेडरेशन तथा राज्यों की अनेक बिजली कर्मचारी यूनियन सम्मिलित हैं | यह सभी फेडरेशन और प्रान्तों की सभी स्थानीय युनियने भी कार्य बहिष्कार में सम्मिलित होंगी |उप्र में सभी ऊर्जा निगमों के तमाम कर्मचारी व् इंजीनियर 08 जनवरी को एक दिन का कार्य बहिष्कार शुरू करेंगे | कार्य बहिष्कार के दौरान बिजली कर्मचारी कोई कार्य नहीं करेंगे और कोई फाल्ट होने पर उसे एक दिन बाद ही अटेण्ड किया जाएगा |
शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में किये जा रहे जनविरोधी प्रतिगामी प्राविधानों का बिजली कर्मचारी और इन्जीनियर्स प्रारम्भ से ही विरोध करते रहे है और इस सम्बन्ध में केंद्र सरकार को लिखित तौर पर कई बार दिया जा चुका है | उन्होंने कहा कि संशोधन पारित हो गया तो सब्सिडी और क्रास सब्सिडी तीन साल में समाप्त हो जाएगी जिसका सीधा अर्थ है कि किसानों और आम उपभोक्ताओं की बिजली महंगी हो जाएगी जबकि उद्योगों व् व्यावसायिक संस्थानों की बिजली दरों में कमी की जाएगी | उन्होंने कहा कि संशोधन के अनुसार हर उपभोक्ता को बिजली लागत का पूरा मूल्य देना होगा जिसके अनुसार बिजली की दरें 10 से 12 रु प्रति यूनिट हो जाएंगी |
प्रस्तावित संशोधन के अनुसार बिजली वितरण और विद्युत् आपूर्ति के लाइसेंस अलग अलग करने तथा एक ही क्षेत्र में कई विद्युत् आपूर्ति कम्पनियाँ बनाने का प्राविधान है | इसके अनुसार सरकारी कंपनी को सबको बिजली देने (यूनिवर्सल पावर सप्लाई ऑब्लिगेशन ) की अनिवार्यता होगी जबकि निजी कंपनियों पर ऐसा कोई बंधन नहीं होगा| स्वाभाविक है कि निजी आपूर्ति कम्पनियाँ मुनाफे वाले बड़े वाणिज्यिक और औद्योगिक घरानों को बिजली आपूर्ति करेंगी जबकि सरकारी क्षेत्र की बिजली आपूर्ति कंपनी निजी नलकूप , गरीबी रेखा से नीचे के उपभोक्ताओं और लागत से कम मूल्य पर बिजली टैरिफ के घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति करने को विवश होगी और घाटा उठाएगी |
उन्होंने कहा कि घाटे के नाम पर बिजली बोर्डों के विघटन का प्रयोग पूरी तरह असफल साबित हुआ है | बिजली कर्मचारियों की मुख्य माँग इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में निजीकरण के संशोधन को वापस लेना , इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट 2003 की पुनर्समीक्षा और राज्यों में विघटित कर बनाई गयी बिजली कंपनियों का एकीकरण कर बिजली उत्पादन , पारेषण और वितरण का केरल और हिमाचल प्रदेश की तरह एक निगम बनाना है| उल्लेखनीय है कि केरल में बिजली उत्पादन , पारेषण और वितरण का एक निगम केएसईबी लिमिटेड और हिमाचल प्रदेश में एचपीएसईबी लिमिटेड कार्य कर रहा है |
बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों की अन्य मांगे विद्युत् परिषद् के विघटन के बाद भर्ती हुए कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन प्रणाली ,समान कार्य के लिए समान वेतन , ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर नियमित प्रकृति के कार्यों हेतु संविदा कर्मियों को वरीयता देते हुए तेलंगाना की तरह नियमित करना , बिजली का निजीकरण पूरी तरह बंद करना और प्राकृतिक संसाधनों को निजी घरानों को सौंपना बंद करना मुख्य हैं |
उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रिसिटी संविधान की समवर्ती सूची में है और राज्य का विषय है किन्तु यदि निजीकरण हेतु इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में संशोधन किया गया तो बिजली के मामले में केंद्र का वर्चस्व बढ़ेगा और राज्यों की शक्ति कम होगी अतः इस दृष्टि से भी जल्दबाजी करने के बजाये संशोधन बिल पर राज्य सरकारों , बिजली उपभोक्ताओं और बिजली कर्मचारियों की राय ली जानी चाहिए |
जनवरी को
नेशनल कोआर्डिनेशन कमीटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉईस एंड इन्जीनियर्स (एन सी सी ओ ई ई ई) के आह्वान पर इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में किये जा रहे संशोधन एवं केंद्र व् राज्य स्तर पर चल रही निजीकरण की कार्यवाही के विरोध में तथा पुरानी पेंशन बहाली हेतु देश के लगभग 15 लाख बिजली कर्मचारी और इंजीनियर आगामी 8 जनवरी को एक दिन की राष्ट्रव्यापी हड़ताल /कार्य बहिष्कार करेंगे |
नेशनल कोआर्डिनेशन कमीटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉईस एंड इन्जीनियर्स ने यह भी एलान किया है कि यदि निजीकरण करने हेतु इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में संशोधन करने हेतु आर्डिनेंस जारी करने की कोशिश हुई तो बिना और कोई नोटिस दिए देश भर के बिजली कर्मचारी व् इंजीनियर उसी समय लाइटनिंग हड़ताल पर चले जाएंगे | एन सी सी ओ ई ई ई ने कहा है कि बिजली उत्पादन के क्षेत्र में निजी घरानों के घोटाले से बैंकों का ढाई लाख करोड़ रु पहले ही फंसा हुआ है फिर भी निजी घरानों पर कोई कठोर कार्यवाही करने के बजाय केंद्र सरकार नए बिल के जरिये बिजली आपूर्ति निजी घरानों को सौंप कर और बड़े घोटाले की तैय्यारी कर रही है |
ऑल इण्डिया पॉवर इन्जीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने यहाँ बताया कि नेशनल कोआर्डिनेशन कमीटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉईस एंड इन्जीनियर्स की समन्वय समिति में ऑल इण्डिया पॉवर इन्जीनियर्स फेडरेशन, ऑल इण्डिया फेडरेशन ऑफ़ पॉवर डिप्लोमा इंजीनियर्स , इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉईस फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया (सीटू), ऑल इन्डिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉईस (एटक ),इण्डियन नेशनल इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फेडरेशन (इन्टक ), ऑल इन्डिया पावरमेन्स फेडरेशन तथा राज्यों की अनेक बिजली कर्मचारी यूनियन सम्मिलित हैं | यह सभी फेडरेशन और प्रान्तों की सभी स्थानीय युनियने भी कार्य बहिष्कार में सम्मिलित होंगी |उप्र में सभी ऊर्जा निगमों के तमाम कर्मचारी व् इंजीनियर 08 जनवरी को एक दिन का कार्य बहिष्कार शुरू करेंगे | कार्य बहिष्कार के दौरान बिजली कर्मचारी कोई कार्य नहीं करेंगे और कोई फाल्ट होने पर उसे एक दिन बाद ही अटेण्ड किया जाएगा |
शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में किये जा रहे जनविरोधी प्रतिगामी प्राविधानों का बिजली कर्मचारी और इन्जीनियर्स प्रारम्भ से ही विरोध करते रहे है और इस सम्बन्ध में केंद्र सरकार को लिखित तौर पर कई बार दिया जा चुका है | उन्होंने कहा कि संशोधन पारित हो गया तो सब्सिडी और क्रास सब्सिडी तीन साल में समाप्त हो जाएगी जिसका सीधा अर्थ है कि किसानों और आम उपभोक्ताओं की बिजली महंगी हो जाएगी जबकि उद्योगों व् व्यावसायिक संस्थानों की बिजली दरों में कमी की जाएगी | उन्होंने कहा कि संशोधन के अनुसार हर उपभोक्ता को बिजली लागत का पूरा मूल्य देना होगा जिसके अनुसार बिजली की दरें 10 से 12 रु प्रति यूनिट हो जाएंगी |
प्रस्तावित संशोधन के अनुसार बिजली वितरण और विद्युत् आपूर्ति के लाइसेंस अलग अलग करने तथा एक ही क्षेत्र में कई विद्युत् आपूर्ति कम्पनियाँ बनाने का प्राविधान है | इसके अनुसार सरकारी कंपनी को सबको बिजली देने (यूनिवर्सल पावर सप्लाई ऑब्लिगेशन ) की अनिवार्यता होगी जबकि निजी कंपनियों पर ऐसा कोई बंधन नहीं होगा| स्वाभाविक है कि निजी आपूर्ति कम्पनियाँ मुनाफे वाले बड़े वाणिज्यिक और औद्योगिक घरानों को बिजली आपूर्ति करेंगी जबकि सरकारी क्षेत्र की बिजली आपूर्ति कंपनी निजी नलकूप , गरीबी रेखा से नीचे के उपभोक्ताओं और लागत से कम मूल्य पर बिजली टैरिफ के घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति करने को विवश होगी और घाटा उठाएगी |
उन्होंने कहा कि घाटे के नाम पर बिजली बोर्डों के विघटन का प्रयोग पूरी तरह असफल साबित हुआ है | बिजली कर्मचारियों की मुख्य माँग इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में निजीकरण के संशोधन को वापस लेना , इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट 2003 की पुनर्समीक्षा और राज्यों में विघटित कर बनाई गयी बिजली कंपनियों का एकीकरण कर बिजली उत्पादन , पारेषण और वितरण का केरल और हिमाचल प्रदेश की तरह एक निगम बनाना है| उल्लेखनीय है कि केरल में बिजली उत्पादन , पारेषण और वितरण का एक निगम केएसईबी लिमिटेड और हिमाचल प्रदेश में एचपीएसईबी लिमिटेड कार्य कर रहा है |
बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों की अन्य मांगे विद्युत् परिषद् के विघटन के बाद भर्ती हुए कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन प्रणाली ,समान कार्य के लिए समान वेतन , ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर नियमित प्रकृति के कार्यों हेतु संविदा कर्मियों को वरीयता देते हुए तेलंगाना की तरह नियमित करना , बिजली का निजीकरण पूरी तरह बंद करना और प्राकृतिक संसाधनों को निजी घरानों को सौंपना बंद करना मुख्य हैं |
उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रिसिटी संविधान की समवर्ती सूची में है और राज्य का विषय है किन्तु यदि निजीकरण हेतु इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में संशोधन किया गया तो बिजली के मामले में केंद्र का वर्चस्व बढ़ेगा और राज्यों की शक्ति कम होगी अतः इस दृष्टि से भी जल्दबाजी करने के बजाये संशोधन बिल पर राज्य सरकारों , बिजली उपभोक्ताओं और बिजली कर्मचारियों की राय ली जानी चाहिए |