एक ऐसी जगह जहां बिना घड़ी और मोबाइल फोन के पता लगता है सही समय, कुर्सी पर आराम से बैठकर करते हैं अंतरिक्ष की सैर,

आईये देश की एकमात्र प्राचीन और आधुनिक यंत्रों से सुसज्जित वेधशाला में
 
उज्जैन। शहर की शासकीय जीवाजी वेधशाला अपने आप में उज्जैन के गौरवशाली इतिहास, कालगणना, भौगोलिक और कई खगोलीय घटनाओं को समेटे हुए है। यहां कालगणना और पृथ्वी, सूर्य जैसे अंतरिक्ष के पिंडों की स्थिति को मापने के लिये जो यंत्र स्थापित किये गये हैं, उन्हें देखकर यह हर्षमिश्रित आश्चर्य होता है कि वास्तव में हमारा इतिहास कितना गौरवशाली और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सम्पन्न था। उस समय के लोग वर्तमान के अत्याधुनिक उपकरणों का अभाव होने के बावजूद हमसे कोसों दूर स्थित ग्रहों की चाल, उनकी खगोलीय स्थिति और अन्य खगोलीय घटनाओं का सटीक आंकलन कैसे कर लेते थे।
 शासकीय जीवाजी वेधशाला मध्य प्रदेश शासन के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा संचालित है। इसका निर्माण सन 1719 में जयपुर के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने करवाया था। ऐसा इसलिये क्योंकि प्राचीन समय में उज्जैन कालगणना की नगरी कही जाती थी। साथ ही उज्जैन के समीप से कर्क रेखा गुजरने के कारण इसका विशेष भौगोलिक महत्व था। इस वजह से ज्योतिषियों और खगोलशास्त्रियों का हमेशा से इस ओर विशेष रूझान रहा।
 वेधशाला के अधीक्षक डॉ.राजेन्द्रप्रसाद गुप्त ने जानकारी दी कि यहां प्रदेश और देश के कोने-कोने से पर्यटक (खासतौर पर बच्चे) घूमने के लिये आते हैं। यहां स्थापित कालगणना के यंत्रों को देखकर अक्सर बच्चे उनसे यही पूछते हैं कि बिना घड़ी की सहायता के यहां बिलकुल सटीक समय की गणना कैसे की जाती होगी। वेधशाला के सम्राट यंत्र के द्वारा समय की गणना की जाती है। जब आकाश में सूर्य चमकता है, तब यंत्र की दीवार के किनारे की छाया पूरब या पश्चिम तरफ के समय बताने वाले किसी निशान पर दिखाई देती है। इस निशान पर घंटे, मिनिट आदि की गिनती से उज्जैन का स्पष्ट स्थानीय समय ज्ञात होता है। यंत्र के पूर्व तथा पश्चिम बाजू में लगी सारणी में लिखे अनुसार मिनिट इस स्पष्ट समय में जोड़ने से भारतीय मानक समय (IST) ज्ञात होता है।
 कई बार बच्चे परखने के उद्देश्य से सम्राट यंत्र पर पहले उपरोक्त प्रक्रिया अनुसार समय की गणना करते हैं और जब वे अपने हाथ पर बंधी घड़ी या मोबाइल फोन पर समय देखते हैं तो बिलकुल यंत्र के अनुसार गणना किये गये समय को देखकर अचरज में पड़ जाते हैं।
 इसी प्रकार यहां बने शंकु यंत्र से सूर्य के उत्तरायण अथवा दक्षिणायन होने की स्थिति ज्ञात होती है। इस यंत्र के मध्य में एक शंकु लगा हुआ है, जिसकी छाया से सात रेखाएं खिंची गई हैं, जो बारह राशियों को प्रदर्शित करती है। इन रेखाओं से 22 दिसम्बर वर्ष के सबसे छोटे दिन, 21 मार्च और 23 सितम्बर दिन-रात बराबर और 22 जून को वर्ष के सबसे बड़े दिन का पता चलता है।
 दिगंश यंत्र के माध्यम से सूर्य और अन्य ग्रह-नक्षत्रों के उन्नतांश (क्षितिज से ऊंचाई) और दिगंश (पूरब-पश्चिम दिशा के बिन्दु से क्षितिज वृत्त में गुणात्मक दूरी) ज्ञात होती है।
 एक अन्य यंत्र भित्ति यंत्र के माध्यम से ग्रह-नक्षत्रों के नतांश (अपने सिरे के ऊपरी बिन्दु से दूरी) उस समय ज्ञात होते हैं, जब वे उत्तर-दक्षिण गोल रेखा को पार करते हैं। यही समय उनका मध्याह्न कहा जाता है।
 यंत्रों के अलावा वेधशाला में मध्य प्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद भोपाल द्वारा सन 2006 में गुब्बारेवाला तारा मण्डल प्रदाय किया गया। इस तारा मण्डल की ऊपरी सतह को ग्लोब के रूप में प्रदर्शित किया गया है तथा अन्दर 50 दर्शकों के बैठने की व्यवस्था की गई है। यहां प्रतिदिन शो आयोजित किये जाते हैं, जिनमें ध्रुवतारा, सप्तऋषि, कालपुरूष आदि प्रमुख तारा मण्डलों की जानकारी प्रदान की जाती है।
 वेधशाला में कुल चार टेलीस्कोप उपलब्ध है, जिनके माध्यम से रात्रि के समय आकाश अवलोकन, ग्रहण आदि विशेष घटनाओं का अवलोकन और सोलर फिल्टर वाले टेलीस्कोप से ग्रहण, सूर्य और उसके धब्बों को दिखाया जाता है। यहां मौसम केन्द्र नागपुर द्वारा वर्षामाप, हवा की गति, दिशामापी और तापमापी यंत्र भी लगाये जाते हैं। इनके माध्यम से प्रतिदिन मौसम की जानकारी संग्रहित कर मौसम केन्द्र को उपलब्ध कराई जाती है।
 वेधशाला द्वारा सन 1942 से प्रतिवर्ष दृश्य ग्रह स्थिति पंचांग का प्रकाशन किया जाता है, जो खगोलविदों और पंचांग निर्माताओं के लिये अत्यन्त उपयोगी है। साथ ही वेधशाला के एक सभाकक्ष भी बनाया गया है, जिसमें हमारा सौर परिवार नामक सीडी और अन्य खगोलीय सीडी का अवलोकन प्रोजेक्टर के माध्यम से करवाया जाता है। इस सभाकक्ष में 60 दर्शकों के बैठने की व्यवस्था है।
 मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम द्वारा वेधशाला में पुस्तकालय का निर्माण भी करवाया गया था, जिसमें 242 प्राचीन खगोलीय ग्रंथ, 173 अन्य ग्रंथ तथा 5 हजार पंचांग उपलब्ध हैं। विद्यार्थियों और पर्यटकों के लिये पुस्तकें पढ़ने की सुविधा उपलब्ध है। अधीक्षक डॉ.गुप्त ने जानकारी दी कि आने वाले समय में वेधशाला में वन विभाग द्वारा 15 लाख रुपये के माध्यम से नक्षत्र वाटिका का निर्माण किया जायेगा। शासकीय जीवाजी वेधशाला खगोलीय घटनाओं में रूचि रखने वालों के लिये ज्ञान का ऐसा सागर है, जो कभी भी समाप्त नहीं होगा। इसीलिये एक बार समय निकालकर अवश्य आयें, इस अदभुत और आकर्षक वेधशाला में।


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