भूखे को रोटी खिला देना पानी पिला देना ये है परोपकार है -महाराज जी 


उज्जैन (मप्र)


कोरोना महामारी से लोगों को बचाने के लिए अपने संदेशों के द्वारा मानव कल्याण की बात करने वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने कहा कि कोरोना जब बढ़ा तो lock down कर दिया गया । जो जहा है वही रुक जाए । अपने कमरों में रहों बाहर ना निकलो। कर्फ़्यू जिसको कहते है वो लगा दिया ।किस लिए ? जीवों को बचाने के लिए,जिससे छुआछूत का रोग फैलने ना पावे ।अब फैक्टरियां बन्द हो गई,काम-धंधा बन्द हो गया, सब अपनी-अपनी जगह रुक गया तो जो दिन में कमाते थे रात को खाते थे तो वो भुखमरी की कगार पर आ गए तो उनको रोटी खिला देना,पानी पिला देना । ये है परोपकार । परोपकार बड़ी चीज़ है परोपकार करना चाहिए । ये हैं जीवन का सार ,,,



जीते-जी अपने मालिक के पास पहुँच जाना,जीवात्मा का सार.


महाराज जी ने बताया जैसे परोपकार जीवन का सार है वैसे ही जीवात्मा का सार क्या है ? 
की इस जीवात्मा को अपने वतन,अपने घर,अपने मालिक के पास पहुँचा दिया जाए । वहां आना-जाना शुरू हो जाये । रोज जिया जाए-रोज मरा जाए ।जिससे मरते समय कोई तकलीफ ना हो,आराम से जीवात्मा निकल जाए । तो आप जितने प्रेमियों को सीधा रास्ता मिल गया ध्यान,भजन,सुमिरन का । ना शरीर को तपाना ना गलाना ना इसको कोई तकलीफ देना बस थोड़ा सा मन को मारना है इसको दुनियां की तरफ से हटा कर मालिक की तरफ लगाना है ।
और जिनको नाम दान नही मिला उनके लिए संदेश है कि वे लोग इस समय जीते जागते नाम जयगुरुदेव नाम की ध्वनि बोलें । शाकाहारी,सदाचारी रहते हुए इस मानव मन्दिर को साफ रखते हुए, छल कपट, पाखण्ड को दूर रखते हुए इस काम को करों ।


स्वार्थ की पूजा से लाभ नहीं ।


महाराज जी ने ये भी बताया कि इस वक्त लोगों के काम बंद हैं,लोगों के पास समय है, तो समय का सदुपयोग करें, ये ज़रूरी नही है कि इस तरह से बचत के लिए पूजा-पाठ कर रहे है,रामायण देख रहे है,भगवान का नाम ले रहा है,कर्फ्यू हटने के बाद भी ऐसे ही करें ।इस समय तो कहते है कि इससे बचत होगी और अपने भगवान,देवी-देवता जिनको मानते है ,घर मे जैसे पूजा पाठ होता है,सब करने में लगे है ।तो आप ये समझों की ये तो है कि एक तरह स्वार्थ की पूजा ।  की खतरा है  तो सब ख़तरे से होशियार हो जाओ ऐसी त्याग-तपस्या कर लो, ऐसा बोल लो, ऐसा कर लो, तो ये स्वार्थ की 
पूजा । तो स्वार्थ की पूजा से लाभ मिलने वाला नही । ज़रूरी नही के आगे भी चलती रहें ।अभी संकट टला। घोषणा हुई कि कोरोना रोग गया तो फिर उसी काम मे लग जाएंगे ।  तब ना भगवान याद आएंगे,ना देवी-देवता याद आएंगे,  ना रामायण-पुराण याद आएगा,  तो ये है स्वार्थ की भक्ति ।
तो भक्ति कैसी होना चाहिए । जैसे सावन,भादो में हर नदी में पानी रहता है लेकिन सराहनीय नदी वो है जिसमे मई, जून की गर्मी में भी पानी रहता है क्योंकि तब जरूरत रहती है ।  तो भक्ति ऐसे होनी चाहिए जो हर पल,हर घड़ी, और हमेशा हो ।
जयगुरुदेव 


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