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उज्जैन(मप्र)
मनुष्य मन्दिर में जीते जी ईश्वर,ख़ुदा को पाने का रास्ता बतानेवाले सन्त उमाकान्त जी महाराज ने भक्तों को सन्देश देते हुए कहा कि कोई कहता है पाप नाशनी गंगा है इसमें जो कुछ भी पाप किये हो,वो नहाओगे तो धूल हो जाएंगे, तो कोई कहता है भगवान को हम घर मे ही बना लेंगे तो पत्थर की मूर्ति बना लेता है,मिट्टी की मूर्ति बना लेता है, पत्थर को मिट्टी को इकट्ठा कर लेता है और भगवान मान करके पूजा करता है चंदन,फूल,पत्ती चढ़ाता है। कोई ये सोचता है कि इनको खुश करंगे जबकि हम जीव हत्या करेंगे तो ये खुश हो जाएंगे । कहि-कहि तो खाने के चक्कर में लोग कहते है कि हम पुजारी है,भगवान को मानते है भोग लगाकर तब खाएंगे,बकरा काट करके चढ़ाएंगे, पहले उनको खिलाएंगे फिर हम खाएंगे।कोई तो ये कहता है कि हम मछली का भोग लगाकर शालीग्राम भगवान को तब फिर हम खाएंगे, हैं भगत है पहले उन्हें लगते है फिर खाते है। उनको क्या पता की जीव हत्या कितना बड़ा पाप होता है?
लेकिन अब तो उस वातावरण में। है,वहां सब ऐसा ही करते है,उसी में फस जाते है।
जीव हत्या से ख़ुदा खुश नही होता।
मुसलमानों में जो अच्छे लोग है रोज़ रखते है मज़हब को समझते है हुज़ूर मुहम्मद साहब को मानते है उनके बताए रास्ते पर चलते है जो उन्होंने बताया बिस्मिल्लाहिरमाने रहीम की वो मालिक रहमान है तुम पर दया करेगा जब तुम जीवो पर दया करोगे पर कहि-कहि वातावरण ऐसा बन गया कि हिन्दू को मार दो, सिक्ख को मार दो,ईसाई को मार दो तभी शबाब मिलेगा,तभी खुश होगा वो ख़ुदा, जन्नत तभी मिलेगी जब लोगों को मार दोगे, काट दोगे, वो उसी को मान लेता है। कि यही धर्म है।
समझो ईसाई ये कहते है वो मर्सिफूल गॉड दयावान है। तो दया कर दो, गरीबो को खिला दो, इनको बच्चों को पढ़ा करके नौकरी लगवा दो,स्कूल खुलवा दो, इनको बाट दो,इनका धर्म परिवर्तन कर दो,इनको ईसाई बना दो। वो इसी को मान लिए।
समरथ गुरु की खोज करों।
सिक्ख लोग कहते है की गुरुओं को मानेंगे,गुरु के बताए रास्ते पर चलेंगे। लेकिन उनके आदर्श का पालन नही करते है। किसी भी गुरु ने मांस नही खाया लेकिन आप ये समझों की वो भूल गए कि गुरु भी दयालू थे और मांस नही खाये और नानक जी ने तो यहां तक कहा कि
"सब राक्षस को नाम जपायो और अमिश भोजन तिन्हे तजवायो" मतलब जो खाते- पीते थे जो उस समय पर,उनको भी मांस तजवा करके और सबको उन्होंने नाम जपवाया,नाम की कमाई करवाया, आप ये समझो कि इन सब चीज़ों को जो उसमे लिखा हुआ है,नानक प्रकाश में गुरु ग्रंथ साहब में, उस पर ध्यान नही देते है ।
तो ये क्या है? यह है भ्रम और भूल इसीलिये कहा गया कि समरथ गुरु की ज़रूरत पड़ती है,संतो की खोज करनी चाहिए ।
जयगुरुदेव