रामायण और महाभारत को टीवी के रुपहले पर्दे पर सुनहरे सीरियलों के रूप में लगभग चार दशक पूर्व पुनर्जीवित कर श्री रामानंद सागर व श्री बी आर चोपड़ा ने निसंदेह भारतीय समाज का महान उपकार किया है। अपने रचना काल में मूल प्रसारण के वक्त सा ही ,वर्तमान में भी दर्शकों को सम्मोहित करने /जादू जगाने में रामायण पुनः सफल रही है ।निश्चय ही यह दीर्घकाल तक याद रखे जाने योग्य क्लासिकल सीरियल बन पड़ा है। लोगों ने इसे देखने के लिए अपने समय का विशेष प्रावधान किया।
रामकथा की मंद पड़ती स्मृति /प्रभाव को अत्यंत सशक्त रूप में साकार करने /पुनर्जागरण का विशिष्ट योगदान इसके माध्यम से हुआ है।
आज के बौद्धिक काल में भी रामायण का यह जादुई प्रभाव क्यों है ? गहन, सघन पड़ताल के बिना ही राम कथा की सहज यात्रा करते हुए सरलता से उत्तर रूपी नवनीत उभर आता है। इस कथा में परिवार व समाज गत रिश्तों में असीम ,सघन प्रेम का उद्दाम प्रवाह है ,त्याग की बलवती भावना है ,प्राण जाए पर वचन न जाए ,के प्रभावी प्रसंग है ।जाति ,वर्ग इन सब से ऊपर उठकर मानवता की सहज प्रतिष्ठा है ।राजा हो या रंक ,सामान्य प्रजा हो या वनवासी, वानर ,निशाचर, यहां तक कि समस्त पशु- पक्षी ,चराचर तक में उस परम तत्व का हृदयस्पर्शी दर्शन है। समभाव की दृष्टि का संचार है। संकीर्णता के प्रतिकूल विशाल ह्रदय ,उदारता के बांधने वाले मर्म स्पर्शी प्रसंग है।व्यावहारिकता के धरातल पर कथा की सम्मोहक प्रस्तुति है।
मानवता के महान स्वप्न की अभिव्यक्ति है राम कथा । यह सब अभिव्यक्त हुआ हैसामान्य मानव जीवन के रूप में ।इससे गज़ब की प्रभावशीलता इसमें आ गई है। शुष्क सिद्धांत कथन की बजाए कथा रस से भरपूर है यह । मनोविज्ञान की गहन पीठिका को मूल रचनाओं से आत्मसात किया गया है ।सबसे बड़ी शक्ति व सामरथ्य इसका यही है कि सचेत रहते हुए भी लोगों की आंखों से सहज ही आंसू टपकने लगते हैं ।कंठ अवरुद्ध होने लगता हैंं और वे उदात्त ,शिवम केंद्रित विचारों के साथ बह जाते हैं ।मन में कहीं सात्विकता की लहर उठने लगती है।सहसा सत्व का प्रकाश फैलने लगता है। यह सब कुछ बहुत महत्वपूर्ण है।महान है।
महाभारत भी प्राचीन भारत की अत्यंत विशिष्ट धरोहर है और यह सीरियल भी क्लासिक श्रेणी का ही बन पड़ा है। मूल प्रश्न यह है कि महाभारत में ऐसा क्या है ? जो दर्शकों को देखने के लिए विवश करता है , मन में उत्साह जगाता है ।हाँ, इसमें जरूर है भाग्य व कर्म का द्वंद । अंतर्द्वंद का गहन मनोवैज्ञानिक चित्रण ।राजसी ग्लैमर युक्त वातावरण ।बेहतरीन संवाद और एक अलग प्रकार की कथा का आकर्षण ।
प्रत्येक मनुष्य में ,उसके अंतर्मन में ,अच्छाई और बुराई सुप्त अवस्था में है ।मनुष्य को ऊपर उठाने वाली उरध्वगामी प्रवृतियां है तो उसे गलत रास्तों पर ले जाने वाली अधोमुखी प्रवृत्तियां भी है। अच्छी रचना की कसौटी यही तो है कि जिसे पढ़कर ,सुनकर या देखकर मन की उर्ध्वगामी ,अच्छाइयों की ओर प्रवृत्त करने वाली मनोवृतियां जागे, वे ही रचनाएं अच्छी कही जा सकती है ।मन में अच्छा करने के लिए प्रेरणा जगाती हुई ,उत्साह और आनंद का परिवेश निर्मित कर सके वे ही रचनाएं हमेशा उच्च कोटि की मानी जाती है।
महाभारत में चालें ही चालें हैं और केंद्र में है गांधार नरेश शकुनी जो चालों का अक्षुण्ण भंडार है ,दुर्योधन को राजा बनाने हेतु षड्यंत्रों के 24 घंटे जाल बुनता रहता है ,विस्मित करता रहता है।
कंस की कथा है जो अपने पिता को बंदी बना कारागृह में डाल मथुरा की राजगद्दी पर बैठा है ।सरोवर में नहाती गोपियों के चीर हरण की कृष्ण लीला है। पांडुओं को जलाकर मारने के लिए लाक्षागृह का विराट षड्यंत्र है ।संतानोत्पत्ति की विचित्र कथाएं हैं ।पांच पतियों वाली द्रौपदी की कहानी है ।भरी सभा में उसे वस्त्रहीन करने का प्रसंग है आदि। आदि।
भारत में दीर्घकाल से महाभारत को घर में रखने व पढ़ने का निषेध है ।महाभारत होना नामक मुहावरा इन्हीं लड़ाई झगड़ा को प्रतिबिंबित करता है ।महाभारत सीरियल को बारीकी से देखने पर भारतीय समाज की उपर्युक्त धारणा अन्याय संगत नहीं ही प्रतीत होती है। प्रोफेसर डॉ. एस एल गोयल की कलम से