- अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष पंडित सुरेंद्र चतुर्वेदी सचिव पंडित तरुण उपाध्याय विधिक सलाहकार पंडित राजेश व्यास ने भारत सरकार गृह मंत्रालय द्वारा गठित क्रिमिनल अमेंडमेंट कमेटी के अध्यक्ष को एक ज्ञापन पत्र प्रस्तुत कर उस की प्रतिलिपि माननीय गृहमंत्री श्री अमित शाह एवं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को ई-मेल द्वारा एवं उनके ऑफिशियल फेसबुक पेज पर भेज कर भारत में समानता के कानून को ध्यान में रखते हुए अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम को समाप्त किए जाने अथवा विकल्प में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा दिए गए आदेश के परिपेक्ष में व्यापक संशोधन किए जाने की मांग की है विज्ञप्ति में बताया गया कि भारत सरकार द्वारा पूर्व से ही अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम संपूर्ण भारत वर्ष में लागू है जिसमें में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस अधिनियम में अग्रिम जमानत दिए जाने का प्रावधान किया गया था साथ ही बिना अनुसंधान किए एफ आई आर दर्ज नहीं की जाए ऐसे आदेश माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दिए थे उक्त आदेश के खिलाफ भारत की संसद ने सभी राजनीतिक दलों ने और सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पलट दिया और सवर्ण समाज के खिलाफ और ज्यादा सख्त कानून बनाए गए उक्त कानून के कारण समानता के अधिकारों का भी दुरुपयोग हो रहा है तथा इस अधिनियम का तो भयंकर रूप से दुरुपयोग हो ही रहा है जिसके कारण संपूर्ण सवर्ण समाज का उत्पीड़न हो रहा है माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जो निर्णय इस अधिनियम में किया गया था उसे यथावत लागू रखा जाए फरियादी की सुनने की बाध्यता भी समाप्त की जाए उसके कारण अनावश्यक रूप से निर्दोष लोग जेल जा रहे हैं झूठी शिकायतें हो रही है और फरियादी जानबूझकर सवर्ण समाज के लोगों को जेल पहुंचाने के लिए न्यायालय में बिना वजह दुर्भावना पूर्वक अनुपस्थित रहता है ताकि उसकी अनुपस्थिति में सवर्ण समाज का आरोपित आरोपी व्यक्ति जेल चला जाए अतः इस काले कानून को शीघ्र समाप्त किया जाए इस आशय का ज्ञापन पत्र भारत सरकार की क्रिमिनल अमेंडमेंट कमेटी गृह मंत्रालय भारत सरकार की ओर संशोधन किए जाने हेतु विचारार्थ ज्ञापन भेजकर किया गया है है कि इस काले कानून को अभिलंब समाप्त किया जाए अथवा विकल्प में इस अधिनियम में व्यापक संशोधन कर फरियादी की उपस्थिति की बाध्यता समाप्त की जाए तथा अग्रिम जमानत का प्रावधान भी किया जाए साथ ही साथ बिना अनुसंधान के प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं की जाए ।
एक्र्टोसिटी एक्ट को समाप्त किए जाए अथवा विकल्प में संशोधन किए जाए